आवाहन

Monday, April 7, 2014

उजळलें भाग्य आतां
अवघी चिंता वारली।।१।।

संतदर्शनें हा लाभ 
पद्मनाभ जोडला ।।धृ।।

संपुष्ट हे हृदयपेटी 
करूनि पोटी सांठवू ।।३।।

तुका म्हणे होता ठेवा 
तो या भावा सांपडला ।।४।।

                                    अभंग क्र.४८३(शिरवळकर ) 

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