आवाहन

Saturday, April 26, 2014

मैं भुली घरजानी बाट | गोरस बेचन आयें हाट ||१||
कान्हा रे मनमोहन लाल | सबही बिसरू देखें गोपाल ||धृ||
काहां पग डारु देखे आनेरा | देखें तो सब वोहीने घेरा ||३||
हुं तों थकीत भई रे तुका | भागा रे सब मनका धोका ||४||

अभंग क्र-३७७५ (शिरवळकर) 


mai bhuli gharjani bat goras bechan aayi hat

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