मैं भुली घरजानी बाट | गोरस बेचन आयें हाट ||१||
कान्हा रे मनमोहन लाल | सबही बिसरू देखें गोपाल ||धृ||
काहां पग डारु देखे आनेरा | देखें तो सब वोहीने घेरा ||३||
हुं तों थकीत भई रे तुका | भागा रे सब मनका धोका ||४||
अभंग क्र-३७७५ (शिरवळकर)
mai bhuli gharjani bat goras bechan aayi hat
No comments:
Post a Comment