आवाहन

Wednesday, April 30, 2014

चुराचुराकर माखन खाया । गवलन का नंद कुमर कन्हैया ||१||
काहे बराई दिखावत मोही । जानत हुं प्रभूपणा तेरा सब ही ||धृ||
और मात सुन उखलसुं गला । बांधलिया आपना गोपाला ||३||
फिरत बनबन गाऊ धरावत । कहे तुकयाबंधू लकरी लेले हात ||४||

अभंग क्र-३४९० (शिरवळकर)

chura churachurakar kar makhan khaya gaulanika nand kumar kanheyya kanhaiyaa tukaram hindi abhanga hindusthani hindustani bhasha abhang

No comments:

Post a Comment