चुराचुराकर माखन खाया । गवलन का नंद कुमर कन्हैया ||१||
काहे बराई दिखावत मोही । जानत हुं प्रभूपणा तेरा सब ही ||धृ||
और मात सुन उखलसुं गला । बांधलिया आपना गोपाला ||३||
फिरत बनबन गाऊ धरावत । कहे तुकयाबंधू लकरी लेले हात ||४||
अभंग क्र-३४९० (शिरवळकर)
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