आवाहन

Thursday, April 24, 2014

जयाचिये आवडी संसार त्याजिला | तेणें कां अबोला धरिला गे माये |
पायां दिली मिठी घातली जीवें गांठी | साऊमा नये जगजेठी उभा ठेला गे माये ||१||
भेटवा वो त्यासीं चरण झाडीन केशीं | सगुण रूपासी मी वो भाळलीये ||धृ||
क्षेमालागीं जीव उतावेळ माझां | उचलोनि चारी भुजा देईन क्षेम |
कोण्या गुंणें कां वो रुसला गोवळू | सुखाचा चावळू मजसी न करी गे माये ||३||

ऐसें अवस्थेचें पिसें लावियेलें कैसें | चित्त नेलें आपणियां सरिसे गे माये |
बापखुमादेविवरे लावियले पिसे | करूनि ठेविलें आपणिया ऐसें गे माये ||४||

jayachiye jyachiye awadi avadi aawadi sansar tyajila tene ka abola dharila ge maye 

No comments:

Post a Comment