सांवळीये निळी भुलली एकी नारी |
परेचां वो घरीं शुद्धी पुसी ||१||
सांग गे बाईये कवणें घरीं नांदे |
कैसें या गोविंदे हिंडविलें ||धृ||
चहुं मार्गीं गेलें न सांपडे वाट |
मग चैतन्याचा घाट वेंघलिये ||३||
ज्ञानदेवी समाधी स्थान पैं विठ्ठल |
अवघा चित्ती सांडल हारपला ||४||
savaliye nili bhulali eki nari parecha vo ghari shuddhi pusi
No comments:
Post a Comment