आवाहन

Tuesday, April 8, 2014


काय नपुंसका पद्मिणीचे सोहळे। 
वांझेसी डोहाळे कैचे होती।।१।।
अंधापुढे दीप खरासी चंदन। 
सर्पा दुग्धपान करू नये।। २।।
क्रोधी अविश्वासी त्यासी बोध कैचा। 


व्यर्थ आपली वाचा शिणवू नये।। ३।।
खळांची संगती उपयोगासी नये।
आपणा अपाय त्याचे संगे।।४।।
वैष्णवी कुपत्थ टाकिले वाळुनी।
एका जनार्दनी तेचि भले।। ५।।


(ky napusanka pdminiche sohale vanzesi dohale eka janardani)

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