संत नामदेव महाराज समाधी (आषाढ वद्य १३ शके १२७२)
स्थळ - महाद्वार,पंढरपूर
अंत:काळी मी परदेशी | ऐसें जाणूनि मानसी |
म्हणोनिया ऋषीकेशी | शरण आलों तुज ||धृ||
नवमास गर्भवासी | कष्ट झालें त्या मातेसी |
टी तंव निष्ठुर झाली कैसी | अंती दुरीं राहिली ||२||
जे जे बापाची आवड | मुखीं घालोनी करी कोड |
जेव्हां लागली यम वोढ | तेव्हां दुरीं राहिली ||३||
बंधु बहिणींचा कळवळा | तें तुं जाणसी दयाळा |
जेव्हा पडती यमशृंखळा | तेंव्हा दुरी राहिली ||४||
कन्या पुत्रादिक बाळ | हे तों स्नेहाचे स्नेहाळ |
तुझें दर्शनेवीण व्याकूळ | अंती दुरी राहिली ||५||
देह घराची कामिनी | ती तंव राहिली भुवनी |
अंती जळतसे स्मशानीं | अग्निसवे एकला ||६||
मित्र आलें गोत्र आलें | ते तों स्मशानीं परतले |
शेखीं टाकोनिया गेले | एकलाचि स्मशानी ||७||
ऐसा जाणोनी निर्धार | मग मज आलासें गहिंवर |
दाही दिशा अंध:कार | मग मज काहीं न सुचे ||८||
ऐसें जाणोनियां पाहीं | मनुष्य जन्म मागुतां नाही |
नामा म्हणे तुझे पायीं | ठाव देई विठ्ठला ||९||
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