आतां उघडीं डोळे | जरी अद्यापि न कळे |
तरी मातेचियां खोळे | दगड आला पोटासी ॥१॥
मनुष्यदेह ऐसा निध | साधिल तें साधे सिद्ध |
करूनि प्रबोध | संत पार उतरले ||धृ||
नाव चंद्रभागे तीरीं | उभी पुंडलीकाचे द्वारीं ॥
कट धरूनियां करीं | उभाउभी पालवी ||३||
तुका म्हणे फुकासाठीं | पायीं घातलीया मिठी |
होतो उठाउठी | लवकरी च उतार ||४||
अभंग क्र-८६ (शिरवळकर)
aata ata ughadi dole jari adyapi n kale tari matechiya khole dagad ala potasi sant
No comments:
Post a Comment