आवाहन

Wednesday, April 30, 2014

आतां उघडीं डोळे | जरी अद्यापि न कळे | 
तरी मातेचियां खोळे | दगड आला पोटासी ॥१॥
मनुष्यदेह ऐसा निध | साधिल तें साधे सिद्ध | 
करूनि प्रबोध | संत पार उतरले ||धृ||
नाव चंद्रभागे तीरीं | उभी पुंडलीकाचे द्वारीं ॥ 
कट धरूनियां करीं | उभाउभी पालवी ||३||
तुका म्हणे फुकासाठीं | पायीं घातलीया मिठी | 
होतो उठाउठी | लवकरी च उतार ||४||

अभंग क्र-८६ (शिरवळकर)


aata ata ughadi dole jari adyapi n kale tari matechiya khole dagad ala potasi sant

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