आवाहन

Saturday, April 12, 2014

वृन्दावनी वेणू कवणाचा माये वाजे  | वेणूनादे गोवर्धन गाजे |
पुच्छ पसरुनी मयूर विराजे | मज पाहतां भासती यादवराजे ||धृ||
तृण चारा चरू विसरली | गाई व्याघ्र एके ठाई झालीं |
पक्षी कुळे निवांत राहिली | वैरभाव समूळ विसरली ||२||
यमुना जळ स्थिर स्थिर वाहे | रविमंडळ चालतां स्तब्ध होये |
शेषकूर्म वराह चकित राहे | बाळा स्तन देऊं विसरली माय ||३||
ध्वनी मंजुळ मंजुळ उमटती | वांकी रुणझुण रुणझुण वाजती |
देव विमानी बैसोनी स्तुती गाती | भानुदास फावली प्रेमभक्ती ||४||

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vrundavani venu kavanacha may vaje venu nade venunade govardhan gaje

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