आवाहन

Friday, April 25, 2014


गौळणी म्हणती यशोदेला | कोठें गे सांवळा | का रथ शृंगारीला |
सांगे वो मजला | अक्रूर उभा असे बाई गे साजणी ||१||
या नंदाच्या अंगणी | मिळाल्या गौळणी ||धृ||
बोले नंदाची पट्टराणी | सद्गदित होऊनी | मथुरेसी चक्रपाणि |
जातो गे साजणी | विव्हळ झालें मन वचन ऐकुनी ||३||
अक्रुरा चांडाळा | तुज कोणी धाडीला | कां घात करुं आलासी |
वधीशी सकळां | अक्रुरा तुझें नाम तैशीच करणी ||४||
रथीं चढले वनमाळी | आकांत गोकुळी | भूमि पडल्या व्रजबाळी |
कोण त्या सांभाळी | नयनींच्या उदकानें भिजली धरणी ||५||
देव बोले अक्रूरासी | वेगें हांकी रथासी | या गोपींच्या शोकासी |
न पहावें मजसी | एका जनार्दनीं रथ गेला निघोनि ||६||

gaulani gavalani mhanati yashodela kothe ge savala savla ka rath shrungarila sange vo majala akrur akrura aakrur aakrura ubha ase bai ge sajani

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